भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब संसद की कार्रवाई लगातार तीन हफ्तों तक बाधित रही...। और बावजूद इसके सरकार अपने कर्तव्यों के पालन में हीलाहवाली बरती जा रही है। सत्ताधारी गठबंधन यूपीए पर चारों ओर से भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं, लेकिन सरकार इन आरोपों को गंभीरता से ना लेते हुए लगातार विपक्ष की उपेक्षा कर रही है। विपक्ष सरकार से टू-जी स्पैक्ट्रम घोटाले का सच जानना चाहती है, लेकिन सरकार आरोपी मंत्री को हटा कर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहती है। क्या जांच का दिखावा कर सरकार अपनी जवाबदेही से बच सकती है।
दरअसल, जिस अंदाज में रोजाना टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े तथ्य और जानकारियों आ रही है... उससे पता चलता है कि मामले में सरकारी तंत्र भी संलिप्त है। यही नहीं टू-जी घोटाले में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। ऐसे में देश की जनता पसोपेश में है। जनता जानना चाहती है कि आखिर अरबों खरबों के इस महा घोटाले का सच क्या है। क्यों सरकार विपक्ष की संयुक्त संसदीय समिति यानि जेपीसी की मांग को ठुकरा रही है।
देखा जाए तो विपक्ष जिस जेपीसी की मांग पर अड़ा हुआ है, वो मौजूदा हालातों के मद्देनज़र बेहद जरूरी साबित हो सकती है। टू-जी स्पैकेट्रम घोटाला, कॉमनवेल्त खेल घोटाला या फिर आदर्श हाउसिंग का घपला ही क्यों ना हो...। सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से इन से जुड़े सबूतों और साक्ष्यों को मिटाने का जो खेल जारी है, उसे देखते हुए विपक्ष की मांग को नाजायज नहीं ठहराया जा सकता है। हालांकि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के अतर्गत टू-जी स्पैक्ट्रम घोटाले की जांच कराने की मंजूरी पेश कर दी है। लेकिन क्या सरकार सीबीआई के दुरुपयोग ना होने की गारंटी विपक्ष को दे सकती है, नहीं।
ये वाकई सोचने वाली बात है कि जिस सीबीआई के हवाले सरकार ने तमाम घोटालों की परत खंगालने का जिम्मा दिया है... वो खुद आज अपनी निष्पक्षता खो चुकी है। इससे भी बड़ा विवाद तो देश के मुख्य सतर्क्ता आयुक्त को लेकर है। सीवीसी थॉमस जो खुद केरल के पॉम ऑयल मामले में अभियुक्त है और जो स्पैकेट्रम के आवंटन को सही ठहरा चुके हैं, वो कैसे देश में किसी घोटाले की निष्पक्ष जांच को सुनिश्चित कर सकते हैं। ऐसे में जितने दिनों तक सत्ताधारी यूपीए गठबंधन विपक्ष की मांग को टालता रहेगा.... उसकी साख पर बट्टा भी उसी रफ्तार के साथ लगता रहेगा।
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