Friday, November 6, 2009

बाहरी की राजनीति!




राजनेताओँ के लिए मुद्दों की कमी हो गई है.... या फिर उनकी सोच सीमित हो गई है... उन्हें अपने देश राज्य या फिर जिले के विकास में बाहरी लोग रोड़े अटकाते नज़र आते हैं....। तभी तो वक्त बे वक्त कोई ना कोई राजनेता अपनी खामियों को छिपाने के लिए सारी अव्यवस्था या फिर भूख, गरीबी, जहालत और ना जाने किन किन दुर्गतियों और कमियों के लिए बाहरी लोगों को जिम्मेदार ठहरा देते हैं.... लेकिन क्या नेता कभी सच का सामना करना पसंद करेंगे....। क्या वे इमानदारी से अपनी खामियों को मानेंगे.... शायद नहीं... यही तो लोकतंत्र और राजनीति का कड़वा सच है। कोई नेता सार्वजनिक तौर पर कभी खुद को असफल नहीं मानता ना ही वो अपने काम को कम आंक कर बखारता है। राजनीति के इसी खेल में असली मुद्दे दब कर रह जाते हैं.... और बाहरी का मुद्दा बन कर उभर आता है। देश की राजधानी दिल्ली की मुख्यमंत्री को जब अपने राज्य में जमी मुसीबतों का हल नहीं सूझता है, तो वो तपाक से बाहरी लोगों पर उन समस्याओँ का ठिकरा फोड़ देती हैं...। यही नहीं जब राज ठाकरे को उसके चाचा वारिस नहीं बनाते हैं तो वो पर प्रांतीयों के खिलाफ दंगे करने पर उतर आता है....। दूसरे प्रांत से आए लोगों के खिलाफ जहर उगल कर ये नेता अपनी खुद की कमियों को छिपा कर निजी स्वार्थों को परवान चढ़ाते हैं...। ताज़ा मामला मध्य प्रदेश का देखें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी वही किया जो एक नेता से अपेक्षित है...। उन्होंने अपने राज्य में फैली बेरोज़गारी के लिए अपने प्रशासन और अपनी सरकार की नितियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया है....। ना ही उन्होंने बेराजगारी की समस्या के निवारण के लिए ही विस्तृत योजना को जनता के सामने रखा.... बल्कि उन्होने राज्य में पसरी बेरोजगारी के लिए ही बाहरी लोगों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया....। अब आप चाहे कितना भी इनकार करें शिवराज जी....या बात से पलटने का काम करें...। लेकिन जो बात सामने आ चुकी है वो देखा जा सकती है। लिहाज़ा अच्छा ये होता कि आप अपनी जिम्मेदारी को समझते.... जनता के सामने अपनी गलतियों को मानते।

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