Sunday, December 12, 2010

देव भूमि में ड्रैगन!

भारत के उत्तरी छोर के दूरदराज के हिमालयी पहाड़ों में है उत्तराखंड। उत्तराखंड जहां अपने अस्तित्व की दसवी सालगिरह मना रहा है। वहीं राज्य के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हो रहा है। उत्तराखंड सामरिक रूप से देश का बेहद महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है। चीन और नेपाल की सीमाओं से सटे उत्तराखंड पर लगातार खतरा मंडराता रहता है। फिर चाहे वो विदेशी आक्रांता का भय हो, माओवाद का प्रसार हो... या फिर राज्य के अंदरूनी हालातों के बिगड़ने के आसार ही क्यों ना हो...। उत्तराखंड को लगातार केंद्र सरकार की मदद और निगरानी की आवश्यक्ता है।
राज्य की ज्यादातर जनता ग्रामीण है और पहाड़ी इलाकों में रहती है। लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती और इससे जुड़े छोटे-बड़े व्यवसाय हैं। हालांकि साल 2001 में हुए जनगणना के मुताबिक राज्य में साक्षरता दर 71.62 से ऊपर है, लेकिन दजिस तेजी के साथ राज्यमें साक्षरता का प्रसार हुआ है... उसके मुकाबले यहां रोजगार और अन्य विकल्प नहीं बढ़े हैं। राज्य में आज भी पढ़े-लिखे युवाओँ को दिल्ली-मुम्बई जैसे महानगरों की ओर रुख करना होता है। ऐसे में राज्य में आधूर-भूत सुविधाओँ का ना होना, जनता के बीच आक्रोश को जन्म देता है। ऐसी परिस्थितियों की तलाश में चीन हमेशा से रहा है।
चीन की विदेश नीति ही विस्तार की नीति पर आधारित है। 1950 में चीन का तिब्बत पर कब्जा हुआ... जिसके बाद उसकी नजर भारत के सीनावर्ची राज्यों पर टिकी। चीन ने नेपाल में गुप्त रूप से माओवाद को बढ़ावा दिया... जिसके फल स्वरूप विश्व के एक मात्र हिन्दु राष्ट्र में माओवादी सत्ता के नज़दीक पहुंच गए। चीन के हौंसले इतने बुलंद हैं कि अब वो भारत के कई राज्यों पर अपनी नजर गढ़ाए बैठा है। चीन अरुणाचल को अपना अंग बता ही रा है...। इसके साथ साथ वो वहां के युवाओं को बर्गलाना चाह रहाव है। चीन ने इसके लिए भारत से सटी सीमाओँ पर सड़कों का एक व्यापक जाल बिछा दिया है। यही नहीं इन सड़कों के आसपास तमाम शैक्षणिक संस्थाओं को भी विकसित किया है जिनके मार्फत वो अरुणाचल जैसे राज्यों के युवाओं को अपनी ओर खींचने की कुचाल भी चलने लगा है।
ऐसे ही हालात उत्तराखंड में भी पैदा हो सकते हैं। सितंबर 2009 में चीनी सैनिक उत्तराखंड के चमोली जिले के रिमखिम तक पहुंच गए थे... वे वहां अपने पीछे बिस्कुट के रैपर और अन्य सामग्रियां छोड़ गए थे, जो बताने के लिए काफी है कि चीनी सैनिकों की क्या मंशा रही होगी। हालात ये हैं कि चीनी सैनिकों की घुसपैठ की खबर भारतीयों सुरक्षा एजेंसियों को तब लगी जब वे वापस अपने ठिकानों के लिए लौट चुके थे। लिहाजा उत्तराखंड और इसके जैसे सीमावर्ती राज्यों के प्रति केंद्र सरकार को रुख उदार होना चाहिए। केंद्र सरकार को चाहिए को वो राज्यों को विशेष आर्थिक पैकेज दे, ताकि राज्य आधार भूत सुविधाओं और बुनियादी संरचनाऔं से महरूम ना रह सके। और चीन जैसे राष्ट्रों की मंशा पर लगाम कसी जा सके।

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