दिल्ली को लूटने और उससे छीनने के लिए यूं तो कई सूरमां आए, लेकिन बहुत कम शख्सियतें ऐसी हैं, जिन्होंने दिल्ली को कुछ दिया है। आखिरी मुगल
बादशाह बहादुर शाह जफर, मिर्जा असउद्दौला
खान और गालिब जैसे महान शायरों और विचारकों ने दिल्ली को ज्ञान और दर्शन की जो
विरासत दी थी वो आज भी जिंदा है। पुरानी दिल्ली के चूड़ीवालान इलाके की पहाड़ी
इमली गली में एक कमरे की लाइब्रेरी में वो तमाम बेशकीमती और ऐतिहासिक किताबें
मौजूद हैं, जो किसी दूसरी लाइब्रेरी
में नहीं मिल सकती।
इस लाइब्रेरी तक पहुंचना भी कोई आसान बात नहीं है। यहां तक पैदल या सिर्फ रिक्शे के जरिए ही पहुंचा जा सकता है। तकरीबन दो दशक से एक ही कमरे में चल रही शाह वलिउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी पुरानी दिल्ली के उस पुराने दौर को वापस लाने की कोशिश में है, जब दिल्ली ज्ञान और कला के क्षेत्र में उत्कर्ष पर थी।
शाह वलिउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी की खासियत
यूं तो एक कमरे में चलने वाली ये पब्लिक लाइब्रेरी बड़ी साधारण है, लेकिन यहां मौजूद 16 हजार से ज्यादा किताबें लोगों को हैरान करने के लिए काफी हैं। लाइब्रेरी के संचालक नईम के मुताबिक बाइस सौ किताबें ऐसी हैं, जो बेहद दुर्लभ हैं और 60 फीसदी तो अब कहीं छपती भी नहीं हैं। नईम बताते हैं कि उनके पास 125 दुर्लभ पांडुलिपियां भी मौजूद हैं।
शाह वलिउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी का ‘खजाना’
पहाड़ी इमली इलाके की शाह वलिउल्लाह लाइब्रेरी में आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की लिखी और उन्हीं के राज में लाल किले की शाही प्रेस में 1855 में छपी दीवान-ए-जफर मौजूद है। ये किताब जफर के सूफियाना रुख का परिचय तो देती ही है साथ ही यह भी बताती है कि बादशाह जफर ना सिर्फ उर्दू, अरबी और फारसी के माहिर थे, बल्कि पंजाबी में भी आसानी से गजले लिखते थे। लाइब्रेरी के संचालक नईम बताते हैं कि उनके पास जो किताबें मौजूद हैं, वो कहीं और नहीं मिलेंगी। हालांकि वो कहते हैं कि दूसरी लाइब्रेरियों में दीवान-ए-जफर मिलती जरूर है, लेकिन वो शाही प्रेस में छपी किताब नहीं होती हैं। इसी के साथ यहां मिर्जा गालिब की बेमिसाल किताब दीवान-ए-गालिब भी उनके मूल हस्ताक्षरों के साथ मौजूद है।
यहां किताबों के बीच तलाशते हुए लोगों को तकरीबन एक सदी पहले लाहौर में छपी जापूजी साहेब और सुखमनी साहेब की प्रतियां, भजन कव्वाली ज्ञान, सूफी मत पर लिखा गया 250 साल पुराना ग्रंथ, 600 साल तर्क आधारित ईरानी ग्रंथ, इराक, बेरूत और सउदी अरब की बेशकीमती कलाकृतियों वाली पांडुलिपियां मिल जाएंगी।
यहां एक हजार साल पुरानी कुरान की दुर्लभ प्रति भी मौजूद है, जिसका हर पन्ना एक अलग शैली में लिखा गया है। अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह के पिता नवाब अमजद अली शाह के निजी संग्रह की किताबें और बांग्ला में पहली बार छपा कुरान का तर्जुमा भी मौजूद है।
इसी के साथ उर्दू में लिखी गई श्रीमद् भगवद् गीता और एमिली मेटकाल्फ की लिखी किताब, “द गोल्डन काल्म- एन इंग्लिश लेडीज लाइफ इन मुगल डेल्ही” भी इस लाइब्रेरी की दराज में कहीं दिखाई पड़ जाएगी।
अब बदलेंगे शाह वलिउल्लाह लाइब्रेरी के हालात!
लाइब्रेरी को डेल्ही यूथ वेलफेयर एसोसिएशन नाम की एक संस्था चलाती है, जिसके अध्यक्ष नईम मोहम्मद हैं, नईम इस लाइब्रेरी के संचालक भी हैं। नईम के
मुताबिक, इस लाइब्रेरी की शुरुआत से उन्हें किसी खास
परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है। उन्हें सिर्फ सरकारी और नेताओं की वादाखिलाफी
का अफसोस है। नईम के मुताबिक, लाइब्रेरी बहुत छोटी है
और किताबें बहुत ज्यादा, लिहाजा लाइब्रेरी
के लिए नई जगह की मांग वो सभी से करते आए हैं, लेकिन आज तक किसी
ने उनकी नहीं सुनी। नईम बताते हैं कि देश-विदेश से पर्यटक और स्कॉलर्स उनकी लाइब्रेरी देखने आते
हैं, लेकिन किताबों और दस्तावेजों की दिनों-दिन खराब
होती हालत से वे चिंतित होते हैं। नईम ने बताया कि केंद्र सरकार के सांस्कृतिक
मंत्रालय ने अब जाकर किताबों और दस्तावेजों को सुरक्षित करने का काम उनकी
लाइब्रेरी में शुरू किया है।
No comments:
Post a Comment