Sunday, September 16, 2012

नहीं मिटती हस्ती कांग्रेस की....


देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण कुछ हो सकता है तो वो है कांग्रेस सरकार का दोबारा सत्ता में लौटना... लेकिन शाय़द एक कड़वा सच ये है कि साल 2014 में जो भी सरकार बनेगी वो कांग्रेस समर्थित होगी या फिर कांग्रेस के नेतृत्व में ही बनेगी। इसके पीछे कुछ कारण है जो इस आशंका को और बल प्रदान करते हैं।

पहला, ये कि कांग्रेस सरकार भले ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चौतरफा घिरी हो, लेकिन कांग्रेस के सामने कोई बड़ी चुनौती पैदा कर सके ऐसा कोई दल नहीं खड़ा है। बीजेपी अपनी अंदरूनी जंग में इतनी उलझी हुई है कि पीएम कौन बने इस पर नेता एक दूसरे से आगे निकले की भागम भाग में लगे हुए हैं। बीजपी से कोई नेता निकल कर संपूर्ण देश में वोट पा सके ऐसा मोदी में करिश्मा नज़र आता है लेकिन वो हिन्दु हृद्य सम्राट तो हो सकता है लेकिन जीत के लिए जरूरी आंकड़ा दिल सके वो नेतृत्व क्षमता उसमें नहीं दिखती हैं, क्योंकि उसका नम सुन तो एनडीए के सहयोगी य़भी छिटक जाते हैं ऐस में कोई और दल आगे आकर उसे समर्थन देगा जरूरी नहीं ह।

दूसरा, काग्रेस भले ही चुना में साल 2009 का प्रदर्शन न दोहरा पाए लेकिन उसे कम से कम 50 सीटें तो देश भर में मिल ही जाएंगी ऐसे में उसकी भूमिका बेहद निर्णायक होने वाली है। लिहाज़ा तीसरा फ्रंट हो या चौथा फ्रंट, जो कोई भी चुनाव में आग निकल कर आएगा उसे कांग्रेस की दरकार हमेशा रहेगी।

बाजेपी हो या फिर समाजवादी पार्टी या और कोई दल, हर पार्टी के नेताओँ में कहीं कई ऐसा नेता नहं है जो देश की उम्मीद पर खरा उतरता हो या उसे जीताने के लिए जनता एक मुश्त वोट डाले, या सभी समीकरणों को धता बताते हुए उस अकेले नेता के पक्ष में वोट कर दे।

कांग्रेस के लिए अहम बात जो उसके नेतृत्व के लिए सबसे जरूरी है वो है चुनाव में उनका चेहरा। हालांकि विपक्षी दल कांग्रेस के नेतृत्व पर ये कह कर सवाल दाग सकते हैं कि उन्होंने कभी जिम्मेदारी नहीं संभाली और पर्दे के पीछे से सरकार चलाते रहे, लकिन यही बात कांग्रेस के लिए काम कर सकती है। कांग्रेस इस एक बात को अपने पक्ष में वोट डलवाने का हथियार बना सकती है, कांग्रेस जनत से ये कह सकती है कि उनकी नेता सत्ता का सुख नहीं भोगहना चाहती थी इसलिए सर्वोच्च पद हासिल नहीं किया, साथ ही वो जनता के हर अहम मुद्दे पर सरकार के साथ रहें हैं और ग़लतफैसलं को विरोध भी किया है, यही कह कर कांग्रेस मनमोहन सिंह पर सारा ठीकरा फोड़ कर चुनाव में फिर नए वायदों के साथ उतर सकती है। इसके अलावा कांग्रेस ये कह सकती है कि मनमोहन सिंह भ्रष्टाचारी हो सकता है लेकिन परिवर विशेष कभी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं रहा। हालंकि ये बात कांग्रेस पढ़े लिखे तबके में नहीं कह सकती, लेकिन उस तबके को ये बात हज़म हो सकती है जो बेहद ग़रीब है और जहां साक्षरता बेहद निचले स्तर पर है, और जो कांग्रेस नेतृत्व को दैवीय चमत्कार वाला मानता है।

वैसे भी देश में वोट तो यही वर्ग डालता है, पढ़ा लिखा वर्ग या तो घर पर बैठ कर टवी पर ज्ञान वर्धन  करता है या इंटरनेट के न्यू मीडिया में अपनी भड़ास निकालता है। कांग्रेस भली भांति जानती है कि समाज में जो ये नए नए तरीकों से आंदोलन करने वाला वर्ग पैदालहुआ है ये उसके अस्तित्व के लिए ख़तरा हो ही नहीं सकता, क्योंकि रीटेल में एफडीआई देने से इसी वर्ग को ज्यदा खुशी होगी क्योंकि यही वर्ग सिर्फ खाता और बकता है, वोट कभी नहीं डालता।

हां, बीजेपी में एक अकेला वयक्तित्व है जो कांग्रेस के नेतृत्व को उसी के अंदाज में मात दे सकता है और वो है गुजरात का बदमाश। बदमाश इसलिए कि उसकी छवी कांग्रेस ने अपने मीडिया की मदद से ऐसी ही बनाई है। बहुसंख्यक उसे नेता मान भी लें लेकिन मुसलमान छिटक जाते हैं। उसकी अपनी पर्टी भी उसे नेता मान ले तो ठीक लेकिन फिर सहयोगी भाग जाते है।

नरेंद्र मोदी के लिए अच्छी बात ये है कि देश की जनता उस अच्छी तरह से पहचान चुकी है, फिर चाहे किसी तरह की भी खबर क्यों ना हो। मोदी अपनी इमेज बदलने की फिराक में है, उसकी इस मंशा से जनता सतर्क हो गई है। क्योंकि नेता जब अपने छवी बदलने की कोशिस कर तो समझ लेना चहिए कि उसकी खुद की आकांक्षाएं बढ़ रही हैं और इतहास गवाह है कि जिस नेता ने भी नेता बनने की कोशिश की है उसे उसके अपनों ने ही इतिहास में गाड़ दिया हा तात्पर्य ये है कि मोदी अपनी हसरतों पर काबू नहीं पा सके हैं और इसी वजह से उन्होंने जनता के दिलों में चाहे जगह बनाई हो लेकिन जिस ज़मीन पर वो खड़े हैं उसके नीचे उन्होंने खुद पानी डाल दिया है। लिहाज़ा मोदी के लिए दलदल में फंस कर रह जाने की उम्मीदें बढ़ गई हैं।

कांग्रेस के लिए आखिरी खतरा पैदा होने से पहले ही दलदल में कत्म हो गया। हांलांकि 2014 में अभी करीब डेढ़ साल का वक्त है और इतने वक्त में बहुत कुछ हो सकता है...। लेकिन फिलहाल कांग्रेस को नुकसान तो हो रहा है लेकिन उसके लिए रास्ते बंद हो गए ऐसा कहना गलत है। क्योंकि कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं है... जो है वो पहले से ही जनता की नज़रों में गिर चुका है, फिर भी 2014 में कुछ होता है तो केंद्र में बिना कांग्रेस के समर्थन वाली गंठबंधन सरकार नहीं बन सकती। तो कांगेस केलिए बल्ले हीव बल्ले है।

कांग्रेस के और बकि पार्टियों के नेता कांग्रेस के युवराज को 2014 में पीएम की गद्दी का दावेदार मानते हैं, लेकिन हकीकत में कांग्रेस अपने युवराज के लिए 2014 नहीं बल्कि 2019 का वक्त राजतिलक के लिए मुकर्रर कर चुकी है। तब तक वो जैसे तैसे जनता में अपनी खोई छवी दोबारा पा चुके होंगे। और उस वक्त एक बार फिर कांग्रेस नेतृत्व के लिए जनता मजबूरी में ही सही लेकिन कालीन बिछा ही देगी।

ऐसे में कांग्रेस के लिए बहुत कुछ है खोने के लिए, लेकिन उससे सिंहासन छीन ले ऐसा दूर दूर तक कोई जांबाज़ दिखाई नहीं देता, लिहाज़ा जनता कितने भी आंहे भर लेकिन कांग्रेस से उसका पिंड नहीं छूटने वाला।

 

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