Saturday, September 26, 2009
आरंभ है प्रचंड
आरंभ है प्रचंड
बोले मसत्कों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तम गुहार दो
आन बान शान या कि जान का हो दाम
आज इक धनुश के बाण पर उतार दो
आरंभ है प्रचंड
मन करे सो प्राण दे
जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है
कृष्ण की पुकार है
या भागवत का सार है
कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवों की भीड़ हो या
पांडवों की नीड़ हो
जो ला सका है वो ही तो महान है
जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या जिंदगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं
तो मौत से भी क्यों डरें
ये जाके आसमान में दहाड़ दो
आरंभ है प्रचंड
हो दया का भाव
या कि शौर्य का चुनाव
या कि हार का वो भाव
तुम ये सोच लो.....
या कि पूरे भाल पर
जला रहे विजय का
लाल लाल ये गुलाल
तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या
म्रिदंग केसरी हो या
कि केसरी हो ताल
तुम ये सोच लो
जिस कवि की कल्पना में
जिंदगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती नसों में आज
फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम भगार दो...
आरंभ है प्रचंड
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